अमित तिवारी
 कासगंज ( टीवीएन)
भारत को ब्रिटेन की दासता से आजादी मिले 75 वर्ष पूरे हो चुके हैं। स्वतंत्रता की इस लड़ाई में अनगिनत क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया। देश को आज़ादी कैसे मिली, यह सब जानकारी हमें एेतिहासिक किताबों,  फिल्मों और कहानी-किस्सों में अक्सर मिलती है,लेकिन  बलिदान और बहादुरी की ऐसी ही एक कहानी के किरदारों से हम आज भी अनजान हैं।  ऐसे ही एक महान क्रांतिकारी व अमर बलिदानी महावीर सिंह राठौर का है, जिनकी जयंती पर आज पूरा देश उन्हें याद कर रहा है।

अमर बलिदानी महावीर सिंह राठौर का जन्म 16 सितम्बर 1904 को यूपी के जनपद कासगंज स्थित शाहपुर टहला  नामक एक छोटे से गांव में हुआ था। आज़ादी की जंग में क्रांतिकारी महावीर सिंह राठौर जो कि उन दिनों गदर आंदोलन और हिंदुस्तान सोशल रिपब्लिकन आर्मी के एक वीर सिपाही के रूप में जाने जाते थे। सन 1922 का एक वाकया है, एक दिन अंग्रेज अधिकारियों ने अपनी राजभक्ति प्रदर्शित करने के उद्देश्य से कासगंज में अमन सभा का आयोजन किया। जिसमें ज़िलाधीश, पुलिस कप्तान, स्कूलों के इंस्पेक्टर, आस -पड़ोस के अमीर -उमरा आदि जमा हुए, छोटे-छोटे बच्चो को भी जबरदस्ती ले जाकर सभा में बैठाया गया। जिनमें से एक महावीर सिंह भी थे। लोग बारी -बारी उठकर अंग्रेजी हुक़ूमत की तारीफ़ में लम्बे -लम्बे कसीदे पढ़  रहे थे,  कि तभी बच्चों के बीच से अचानक एक आवाज गुंजायमान हुई।  
महात्मा गांधी की जय बाकी लड़कों ने भी इसी स्वर में ऊँचे कंठ से इसका समर्थन किया और पूरा वातावरण इस नारे से गूँज उठा। देखते -देखते गांधी विरोधियों की वह सभा गांधी की जय- जयकार के नारों से गूँज उठी। लिहाजा अधिकारी तिलमिला उठे। प्रकरण की जांच के फलस्वरूप महावीर सिंह को विद्रोही बालकों का नेता घोषित कर सजा दी गयी थी,  पर इसने उनमें बगावत की भावना को और प्रबल कर दिया। 

 *दिल्ली असेम्बली बम कांड, सांडर्स की हत्या में थे शामिल* 

बड़े होकर महावीर जी भगतसिंह राजगुरु व सुखदेव जैसे क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गए। वर्ष 1929 में दिल्ली असेंबली में बम फेंकने व सांडर्स की हत्या के बाद भगत बटुकेश्वर दत्त,  राजगुरु सुखदेव के साथ महावीर सिंह को भी हिरासत में ले लिया गया। मुक़दमे की सुनवाई के लिए उन्हें लाहौर भेज दिया गया। मुकदमा समाप्त हो जाने पर सांडर्स की हत्या में भगत सिंह की सहायता करने के अभियोग में महावीर सिंह को उनके सात अन्य साथियो के साथ आजीवन कारावास का दंड दिया गया। भगतसिंह राजगुरु सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों के साथ-साथ महावीर सिंह राठौर भी 40 दिनों तक जेल के अंदर ही भूंख हड़ताल पर बैठे रहे। सजा के बाद कुछ दिनों तक पंजाब की जेलों में रखकर बाकी लोगो को (भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और किशोरी लाल के अतिरिक्त) मद्रास प्रांत की विभिन्न जेलों में भेज दिया गया। महावीर सिंह और गयाप्रसाद को बेलोरी सेंट्रल जेल ले जाया गया। जहाँ से जनवरी 1933 में उन्हें उनके कुछ साथियो के साथ अंडमान निकोबार स्थित पोर्ट ब्लेयर की सेल्ल्यूलर जेल में कालापानी की सज़ा काटने के लिए भेज दिया गया।
अंग्रेजों की नीतियों के विरुद्ध जेल के अंदर भूंख हड़ताल पर बैठे महावीर सिंह के मुंह में जबरन दूध डालने का प्रयास किया गया। महावीर सिंह के प्रतिरोध के कारण दूध उनके फेंफडों में चला गया जिसके कारण उनकी मृत्यु हुयी हो गयी। और उनके शव को पत्थरों से बांधकर समुद्र में फेंक दिया और इसी के साथ समंदर की अनंत गहराईयों में वो खो गए लेकिन भारतीय स्वतंत्रता के अमर बलिदानियों में उनका नाम सुनहरे अक्षरों में हमेशा के लिए अंकित होकर अमर हो गया ।
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