डा. सी पी राय
स्वतंत्र राजनीतिक समीक्षक और वरिष्ठ पत्रकार
-------- बापू की जयंती पर विशेष
बहुत आश्चर्यचकित करने वाला है कि हिंदुस्तान आज उन ताकतों के द्वारा महत्मा गाँधी की माला जपने से जिनके आदर्शो ने आज से 73 वर्ष पूर्व महात्मा गाँधी की महज शारीरिक हत्या कर दी थी, लेकिन बापू मरे नही । अपने विचारो और आदर्शो के साथ वो आज भी जिन्दा हैं । 73 वर्ष बीत गए । इतनी लम्बी अवधि में एक पूरी पीढ़ी गुजर जाती है, रास्ट्र के जीवन में अनगिनत संघर्षो, संकल्पों और समीक्षाओ का दौर आता और जाता रहा । इतने उतार और चढ़ाव के बावजूद अगर आज भी किसी का वजूद कायम है तो निश्चय ही उनमें कुछ तो चमत्कार होगा । बापू को इसी नजरिये से देखने की जरूरत है ।
मुल्क को आजादी दिलाने के बाद भी वे संतुस्ट नही थे । सत्ता से अलग रहकर वह एक और कठिन काम में लगे थे। वे देश की आर्थिक , सामाजिक और नैतिक आजादी के लिए एक नए संघर्ष की उधेड़बुन में थे । रामधुन ,चरखा ,चिंतन तथा प्रवचन उनकी दिनचर्या थी । एक दिन पहले ही उनकी प्रार्थना सभा के पास धमाका हुआ था, लेकिन दुनिया का महानतम सत्याग्रही विचलित नही हुआ। वह स्वावलंबी भारत का स्वप्न देखते थे। वह गाँवो को अधिकार संपन्न , जागरूक तथा अंतिम व्यक्ति को भी देश का मजबूत आधार बनाना चाहते थे। जब दिल्ली में उनके कारण आई सरकार का स्वरूप ले रही थी, स्वतंत्रता का जश्न मन रहा था , तब बापू दूर बंगाल में खून-खराबा रोकने के लिए आमरण कर रहे थे । बापू की दिनचर्या में परिवर्तन नही ,विचारो में लेशमात्र भटकाव नही ,लम्बी लड़ाई के बाद भी थकान नही और लक्ष्य के प्रति तनिक भी उदारता नही । अहिंसा को सबसे बड़ा हथियार मानने वाले बापू निर्विकार भाव से अपनी यात्रा पर चले जा रहे थे, कि तभी एक अनजान हाथ प्रकट हुआ जो आजादी की लड़ाई में कहीं नही दिखा था, ना बापू के साथ ,ना सुभाष के साथ और ना भगत सिंह के साथ । उस हाथ में थी अंग्रेजो की बनाई पिस्तौल, उससे निकली अंग्रेजों की बनाई गोली , वह भी अंग्रेजों के दुम दबा कर भाग जाने के बाद , तथाकथित हिन्दोस्तानी हाथ से जिसने किसी अंग्रेज के घर की दीवार पर एक कंकरी तक नही फेंकी थी । वह महापुरुष जिसके कारण इतनी बड़ी साम्राज्यवादी ताकत का सब कुछ छीन रहा था, फिर भी उनके शरीर पर एक खरोंच लगाने की हिम्मत नही कर पाई , जिस अफ्रीका की रंगभेदी सरकार भी बल प्रयोग नही कर सकी थी, उनके सीने में अंग्रेजो की गोली उतार दी एक सिरफिरे कायर ने वह महापुरुष चला गया हे राम! कहता हुआ । गाँधी जी के राम सत्ता और राजनीति के लिए इस्तेमाल होने वाले राम नही थे, बल्कि व्यक्तिगत जीवन में आस्था तथा आदर्श के प्रेरणाश्रोत इश्वर थे ।
तब आरएसएस पर उगली उठी थी, उसपर पाबन्दी भी लगी और संघ क कट्टर सदस्य होने के बावजूद अज्ञात कारणों से हत्यारे ने अपने संघ से रिश्ते नकार दिये। सवाल उठा की बापू की हत्या क्यों की गयी। आज भी यह सवाल अनुत्तरित है! इस सवाल की प्रेतछाया से बचाने के लिए ही शायद भाजपा ने कुछ वर्षो पहले गांधीवाद शब्द का प्रयोग किया था संघ से बहुत विरोध हुआ था और फिर कभी नाम नही लिया । यह गिरगिट के रंग बदलने के समान ही था । गाँधी जी फासीवाद के रास्ते की बड़ी बाधा थे । गाँधी जी ईश्वर- अल्ला तेरो नाम तथा वैष्णवजन तों तेने कहिये प्रीत पराई जाने रे की तरफ सबको ले जाना चाहते थे । बापू के आदर्श राम , बुद्ध , महावीर , विवेकानंद तथा अरविन्द थे। हिटलर को आदर्श मानने वाले हिटलर कि तारीफ करते हुए किताब लिखने वाले और हिटलर को आदर्श बताने वाले और गाँधी जी हत्यारे को महान बताने कि किताब छाप कर बांटने वाले उन्हें कैसे स्वीकार करते ? गाँधी सत्य को जीवन का आदर्श मानते थे ,झूठ को सौ बार सौ जगह बोल कर सच बनाने वाले उन्हें कैसे स्वीकार करते ? शायद इसीलिए महात्मा के शरीर को मार दिया गया ।
क्या इससे गाँधी सचमुच ख़त्म हो गए ? बापू यदि ख़त्म हो गए तों मार्टिन लूथर किंग को प्रेरणा किसने दी ? नेल्सन मंडेला ने किस की रोशनी के सहारे सारा जीवन जेल में बिता दिया ,परन्तु अहिंसक आन्दोलन चलते रहे और अंत में विजयी हुए ? दलाई लामा किस विश्वास पर लड़ रहे है इतने सालो से ? खान अब्दुल गफ्फार खान अंतिम समय तक सीमान्त गाँधी कहलाने में क्यों गर्व महसूस करते रहे ? अमरीका के राष्ट्रपति आज भी किसको आदर्श मानते है और दुनिया में बाकी लोगो को भी मानने की शिक्षा देते रहते है ? अभी हाल मे कुछ देशो मे अहिंसक क्रान्ति किसके रस्ते पर चल कर हुई । संयुक्त रास्ट्र संघ के सभा कक्ष से लेकर 100 के क़रीब देशो की राजधानियों ने महात्मा गाँधी को जिन्दा रखा है। कही उनके नाम पर सड़क बनी, तों कहीं शोध या शिक्षा संस्थान और कुछ नही तो प्रतिमा तो जरूर लगी है ।जिसको भारत में मिटाने का प्रयास किया गया ,वह पूरी दुनिया में जिन्दा है । महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने कहा की आने वाली पीढियां शायद ही इस बात पर यकीन कर सकेंगी की कभी पृथ्वी पर ऐसा हाड़-मांस का पुतला भी चला था । जिस नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को गाँधी के विरुद्ध बताया गया ,उन्होंने जापान से महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता कह कर पुकारा तथा कहा कि यदि आजादी मिलती है तो वे चाहेंगे की देश की बागडोर राष्ट्रपिता संभाले , वह स्वयं एक सिपाही की भूमिका में ही रहना चाहेंगे। परन्तु बापू को सत्ता नही , जनता की चिंता थी , उसकी तकलीफों की चिंता थी ।
उन्होंने कहा की भूखे आदमी के सामने ईश्वर को रोटी के रूप में आना चाहिए । यह वाक्य मार्क्सवाद के आगे का है। उन्होंने कहा की आदतन खादी पहने , जिससे देश स्वदेशी तथा स्वावलंबन की दिशा में चल सके , लोगो को रोजगार मिल सके । नई तालीम के आधार पर लोगो को मुफ्त शिक्षा दी जाये । लोगो को लोकतंत्र और मताधिकार का महत्व समझाया जाये और उसके लिए प्रेरित किया जाये । उन्होंने सत्ता के विकेन्द्रीकरण , धर्म ,मानवता ,समाज और रास्ट्र सहित उन तमाम मुद्दों की तरफ लोगो का ध्यान खींचा जो आज भी ज्वलंत प्रश्न है ।
वे और उनके विचार आज भी जिन्दा है और प्रासंगिक है । अमेरिका में कुछ वर्ष पूर्व जब हिलेरी क्लिंटन ने बापू पर कोई हलकी बात कर दिया तो अमेरिकी लोगो ने ही इतना विरोध किया की चार दिन के अन्दर ही हिलेरी को खेद व्यक्त करना पड़ा । गुजरात की घटनाओं के समय जब हैदराबाद में दो समुदाय के हजारों लोग आमने -सामने आँखों में खून तथा दिल में नफरत लेकर एकत्र हो गए , तो वहां दोनों समुदाय की मुट्ठी भर औरते मानव श्रंखला बना कर दोनों के बीच खड़ी हो गयी । यह गाँधी का बताया रास्ता ही तो था , वहां विचार के रूप में गाँधी ही तो खड़े थे । कुछ साल पहले अहिंसा के पुँजारी बापू के घर गुजरात में राम , रहीम और गाँधी तीनो को पराजित करने की चेष्टा हुई , लेकिन हत्यारे ना गाँधी के हो सकते है , ना राम के ना रहीम के। और गुजरात कांड के हीरो पता नही कैसे महात्मा गाँधी का नाम लेने और लगातार लेने कि हिम्मत जुटा रहे है । समय बताएगा कि बापू और सरदार का नाम लेने के पीछे असली मंशा क्या है।
महत्मा गाँधी तो नही मरे ,फिर हत्यारे ने मारा किसे था ? ऐसे सिरफिरे लोग और उनके संगठन कितनी हत्याएं करेंगे ? पिछले 73 वर्षो में भी वे गाँधी को नही मार पाये है। वह कौन सा दिन होगा जब फासीवादी लोग गाँधी की पूर्ण हत्या करने में कामयाब हो पाएंगे ? सचेत रहना पड़ेगा की फासीवादी ताकतें अचानक बापू का इस्तेमाल करने लगी ? इसके पीछे देश को हिटलर की तरह भ्रमित कर सत्ता हथियाने और फासीवाद थोप कर बापू की अंतिम हत्या करने का उद्देश्य तो नहीं है ? जिम्मेदारी और जवाबदेही बापू को मानने वालो की है की सत्ता की ताकत से महात्मा गाँधी को बौना करने ,उन्हें गाली देने और गोली मारने वालो से मानवता को बचाएं और देश को बचाएं । रास्ता वही होगा जो गाँधीजी ने दिखाया था । 73वाँ वर्ष जवाब चाहता है दोनों से की फासीवादियो तुमने गाँधी को मारा क्यों था ? उद्देश्य क्या था ? तुम कहा तक पहुंचे ? उनके मानने वालो से भी कि आर्थिक गैर बराबरी , सामाजिक गैर बराबरी के खिलाफ , नफ़रत और शोषण के खिलाफ बापू द्वारा छेड़ा गया युद्ध फैसलाकुन कब तक होगा ? उनके सपनो का भारत कब तक बनेगा ? इन सवालो के साथ महात्मा गाँधी तथा उनके विचार आज भी जिन्दा है और कल भी हमारे बीच मौजूद रहेंगे ।
पर तमाम सवालो पर जवाब चाहिए महात्मा गांधी को भी और देश को भी ।
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